Monday 13 August 2012

पर्वराज पर्युषण पर सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाये।




अराधना की बेला मे,
अराधक मै बन जाऊँगा,
पर्वराज पर्युषण पर,
अहिंसा ही अपनाऊँगा।

पर्वो मे पर्व महान,
जैनो का है सिद्दांत,
पंच पर्मेष्टी की वाणी जिसमें,
वंदन कर उसमें झुक जाऊँगा।

पर्वराज पर्युषण पर,
अहिंसा ही अपनाऊँगा।

शत्रुंजय की पहाडी पर,
सच भगवान तुझको पाऊँगा,
श्रद्दा से जो पाया धर्म,
अब छोड कही मैं ना जाऊँगा।
  
तेरा शील देखकर,
मन-मोहित होता मालिक,
चरणो की दहलीज पर,
हर रात मै रुक जाऊँगा।

अराधना की बेला मे,
अराधक मै बन जाऊँगा,
पर्वराज पर्युषण पर,
अहिंसा ही अपनाऊँगा।

धन्यवाद
प्रतीक संचेती द्वारा

Thursday 9 August 2012

“खूब मग्न हो गाओ रे--नंद किशोरा आयो रे”




नंद किशोरा आयो रे,
मन मे धूम मचायो रे,
कान्हा जी को नमन करुँ,
तन इनमे बिसरायो रे।

नंद किशोरा आयो रे।

नाँच रही है पूरी सृष्टी,
देखो मग्न वह गागर मूर्ती,
माखन की तुम धार लगाकर,
दिलसे इन्हे अपनाओ रे।

नंद किशोरा आयो रे।

नटखट सी है भोली-भाली,
देखो राधा भी है दिवानी,
श्यामा के वृदांवन मे,
खूब मग्न हो गाओ रे।

नंद किशोरा आयो रे।।

धन्यवाद
प्रतीक संचेती द्वारा

Tuesday 7 August 2012

“खूब बरस गए मेघो से”




खूब बरस गए मेघो से,
एक कवायत हमने की,
पूछा यादो की क्यों तुलना,
हिम-हिमालय से तुमने की।

गज-बरस कर फिर युँ बोले,
मैने तो इंत-जाम किया,
फिकी-फिकी बारिश को,
ख्वाबों से अंजाम दिया।

बस क्या था फिर समधर मे,
रातो की ही शाम हुई,
लीन हुई सारी महफिल,
और खूब शरारत मन ने की।

खूब बरस गए मेघो से,
एक कवायत हमने की।।

प्रतीक संचेती द्वारा

“व्यथा सुनाते कथित पेड़”




कट गय़ा मै राहों पर ही,
वैशाखी भी ना मिली,
जहाँ जिसे देखा मैने,
कुल्हाडी से मिली जमीन।

कोई आया खोद गया,
मेरे नीचे से खदान,
किसी ने पूछा मेरे से,
क्या बनाऊँ मै यहाँ मकान?

क्या कहता इन इंसानो से,
बधिर भी जो समझ गये,
मेरे तन के अंगो से ही,
नए कुल्हाड बन गये।

सिलसिला सा रच गया है,
अब तो इन अवसादों का,
काट दिया कह गंगा निकली,
भँवर कहाँ फिर थम गये?

कट गय़ा मै राहों पर ही,
युँ नए कुल्हाड बन गये।

प्रतीक संचेती

Sunday 5 August 2012

“बहना सिखाने बह रही मिठास भरी मित्रता”





मुद्द्तो के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी,
जिंदगानी की समीक्षा लहरो से कह रहीं थी,
पास तूने क्यों बुलाया; जो तुझे थमना नही था,
मुस्कुरा कर कह गईं बहना सिखाने बह रही थी। 



मुद्द्तो के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी। 


कश्मकश की हर डगर परछाईंयो के साथ थी,
पास मैने जो पुकारा दोस्तो के नाम थी,
कुछ अनछुऐ मृगजलो के दूर कितने स्ताप थे,
स्वास तो कुछ हवाएँ घुल-मिला कर दे रही थी। 



मुद्द्तो के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी,
दोस्ती की यह अदाएँ कई दिलों मे लह रही थी;
मुद्द्तो के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी। -2

प्रतीक संचेती द्वारा

Wednesday 1 August 2012

“बहनो के प्यार मे आज फिर पेश कुछ पंक्तियाँ”





काका के निधन के बाद बहुत दिनो से ना जाने कुछ लिखने की इच्छा नही हो रही थी। लेकिन आज इस सावन के प्रिय पर्व पर बहनो का प्यार मुझे फिर अपनी और खीच लाया। माँ, बहन, दोस्त और जीवन संगम के हर मोड पर साथ देने वाली सारी स्त्रीयो को मेरा नमन, वंदन।

आज के इस युग मे देश खुली सोच मे तो परिवर्तित हो रहा है परन्तु कहीं ना कहीं जाती भेद अपनी स्थती जमाये हुए है। इसी वातावरण को बदलने और अपने जीवन मे बहनो के उपकार को दूसरो तक पहुँचाने तमाम स्त्रीयों को समर्पित मेरी कुछ पंक्तियाँ-

लडकियाँ भी तो इंसान हैं,
खूबसूरत जिनका इमान है,
कभी बनती माँ कभी बहन बन जाती,
दोस्ती के नाम पर वह हर बात हजम कर जाती।

कोशिश मे वह प्यारा सा साथ होता,
हर कठिनाइयों मे जिसका दिल-दिलदार होता,
ऐसी खूबसूरत रचना को दुनिय़ा निगल कर जाती,
दोस्ती के नाम पर वह हर बात हजम कर जाती।

लड़का वंश की घड़ी घुमाता,
लड़की उसे चलाती,
दो-दो परिवार की हर साँस आगे बढ़ाती,
दोस्ती के नाम पर वह हर बात हजम कर जाती।

शूर-वीर की हर लडाई सम्मान का दर्जा पाती,
असली लड़ाई लड़ने वाली को दुनिया है ठुकराती,
बलिदान के लिये भी हाथ आगे बढ़ाती,
दोस्ती के नाम पर वह हर बात हजम कर जाती। -2

मेरे जीवन मे भी ऐसे कई महत्वपूर्ण अंश निभा सब कुछ हजम करने वाली तमाम बहनो की सफलता की कामना करते हुए आप सभी लोगो को भी इस मिठास के शुभ पर्व रक्षा-बंधन पर बहुत-बहुत बधाई।

धन्यवाद
प्रतीक संचेती द्वारा