मेरी कविताओं का छोटा संग्रह- प्रतीक संचेती
Sunday, 17 August 2014
Sunday, 13 October 2013
विजयादशमी और 21वी सदी
त्यौहारो का चौपाल
लगा है,
एक दिवस का
संसार लगा है,
माया-मोह-कपट
मे देखो,
पुतलो का अंबार
लगा है/
त्यौहारो का चौपाल
लगा है/
बडे-बडे है
देखो रावण,
आग लगाते धरती पावन,
क्रोध-हब्श की
प्यास लगी है,
पुतलो मे अंगार
लगा है/
त्यौहारो का चौपाल
लगा है/
समय-समय की
देखो रंजिश,
माता बहने होती
शोषित,
काले चेहरो की कश्ती
पर,
पुतलो से रोशन
संसार खड़ा है/
त्यौहारो का चौपाल
लगा है/
विजयादशमी की सभी
को बहुत-बहुत
शुभकामनाये/
रचना:
प्रतीक संचेती
Thursday, 6 June 2013
“संबंधों की छाया”
जीवन के साथी को मैने,
अपने साए में देखा है,
छोटा सा कद है मेरा,
देशांतर
बढ़ते देखा है/
यह है छाया मेरे तन की,
लम्बी जाने क्यूं होती है,
दो भुजाएं ले चलता हूं,
फिर भी इतना क्यो तनती है/
धूप मिले चाहे मंथन की,
या हो कोई रूप अंधेरा,
हर मौके पर साथ निभाती,
फिर मेरी मुश्किल ढ़लती है/
छाया है छाया बंधन की,
हर पल साए सा चलती है,
हर मौके पर साथ निभाती,
फिर मेरी मुश्किल ढ़लती है; फिर मेरी मुश्किल ढ़लती है/
रचना:
प्रतीक
संचेती
Saturday, 18 May 2013
इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है!
इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है,
जब यह दिल हँसता है तो कोई रोता है,
इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है/
मेरे आँखो मे आँसू जब आते है,
शायद अंबर भी अश्रु मे भिगोता है,
लेकिन कुछ का चेहरा जब खिल-खिल होता यहाँ,
तब सागर भी लहरो से कहता है......................
इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है/
कभी सोचता हुँ हँसता रहुँ,
कि उनकी उदासी देख बस मन युँ कहता है,
रो लेना तू भी थोडा सा इस धरती पर,
तेरे अश्को से यहाँ कोई अपना गम धोता है/
इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है, इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है..............................
रचना:
प्रतीक संचेती
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