Sunday, 17 August 2014

जनमाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाय़े.............

बंशी की धुन,
माखन की धार,
चाँद की शीतलता,
समाए सारा संसार/


पंखुडी से कोमल,
सूर्य से तेज,
सागर से गहरे,
समाए खुशियाँ अपार/


कृष्ण-कृष्ण कृष्ण गोपाल........


जन्माष्टमी की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनाये/
जय-जय श्री कृष्णा......................

प्रतीक की कलम से.............

Sunday, 13 October 2013

विजयादशमी और 21वी सदी


त्यौहारो का चौपाल लगा है,
एक दिवस का संसार लगा है,
माया-मोह-कपट मे देखो,
पुतलो का अंबार लगा है/

त्यौहारो का चौपाल लगा है/

बडे-बडे है देखो रावण,
आग लगाते धरती पावन,
क्रोध-हब्श की प्यास लगी है,
पुतलो मे अंगार लगा है/

त्यौहारो का चौपाल लगा है/

समय-समय की देखो रंजिश,
माता बहने होती शोषित,
काले चेहरो की कश्ती पर,
पुतलो से रोशन संसार खड़ा है/

त्यौहारो का चौपाल लगा है/

विजयादशमी की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाये/

रचना:

प्रतीक संचेती

Thursday, 6 June 2013

“संबंधों की छाया”




जीवन के साथी को मैने,
अपने साए में देखा है,
छोटा सा कद है मेरा,
देशांतर बढ़ते देखा है/

यह है छाया मेरे तन की,
लम्बी जाने क्यूं होती है,
दो भुजाएं ले चलता हूं,
फिर भी इतना क्यो तनती है/

धूप मिले चाहे मंथन की,
या हो कोई रूप अंधेरा,
हर मौके पर साथ निभाती,
फिर मेरी मुश्किल ढ़लती है/

छाया है छाया बंधन की,
हर पल साए सा चलती है,
हर मौके पर साथ निभाती,
फिर मेरी मुश्किल ढ़लती है; फिर मेरी मुश्किल ढ़लती है/

रचना:

प्रतीक संचेती

Saturday, 18 May 2013

इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है!



इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है,
जब यह दिल हँसता है तो कोई रोता है,
इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है/

मेरे आँखो मे आँसू जब आते है,
शायद अंबर भी अश्रु मे भिगोता है,
लेकिन कुछ का चेहरा जब खिल-खिल होता यहाँ,
तब सागर भी लहरो से कहता है......................

इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है/

कभी सोचता हुँ हँसता रहुँ,
कि उनकी उदासी देख बस मन युँ कहता है,
रो लेना तू भी थोडा सा इस धरती पर,
तेरे अश्को से यहाँ कोई अपना गम धोता है/

इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है, इस दुनिया मे ऐसा क्यो होता है..............................

रचना:
प्रतीक संचेती