Monday, 8 October 2012

प्रकृती के नजारे



कैद कर लुँ यह नजारे,
जो मुझे अपना रहे हैं,
फूल बादल सब मिलाकर,
गीत को फरमा रहे हैं।

वह जो मानव कर रहा है,
धूल की उत्तम सफाई,
वह धुँआ जो उड़ रहा है,
कह रहा चल अब बुराई।

यह नियम है प्रकृती का,
बैर को जो है मिटाना,
साथ जीना हर कदम पर,
देखना फिर तू जमाना।

आस भी तू ना लगाये,
ऐसी फहफिल जम रही है,
कैद कर लुँ यह नजारे,
प्रकृती बदल रही है……………….

रचना:
प्रतीक संचेती

“जिंदगी की मधुशाला”


लाख पी है आज मैने,
जिंदगी की वह रुमानी,
खूब पी है आज मैने,
काँच बोतल से कहानी,
आज मैने झाँक कर,
रस लवो को पीस डाला,
आज मैने जिंदगी के कुछ हदो को सींच डाला, जिंदगी की मधुशाला।

आज हाला की खता पर,
खूब काजल भी जलाये,
आज मैने साफ कहकर,
खूब दिवाने बनाये,
आज ठस मे पी गया मै,
जिंदगी का वह निराला,
खूब खीच कर बुलाई और यौवन की वह बाला, जिंदगी की मधुशाला।

खूब नाचा है मदिरा,
आज मेरे पथ चरण से,
खूब खोया है मुसाफिर,
रास्तो के चल-गमन से,
आज मधु का वह प्याला,
जाम इतना भर गया है,
आज मुश्किल खो गई है बट गई जो राजमाला, जिंदगी की मधुशाला। 

रचना:
प्रतीक संचेती

Sunday, 30 September 2012

बदलाव



जब छोटे थे,
तुम उसे कितना नचाया करते थे,
हर त्योहार मे वह,
तुम्हारे साथ होती थी,
आज भी तुम,
उसे नचाते हो,
अपने इशारो से,
तुम उसे लोचन सा,
तिमिर-तिमिर घुमाते हो,
बचपन की वह मस्ती,
तुम्हे खुशी देती थी,
आज भी तुम खुश हो,
वह भी कठपुतली सा नृत्य करती है,
लेकिन…….
अब तुम्हे उसकी डोर नही पकडना पडती,
वह आधुनिक हो गई है ना?
तुम्हारे इशारो से,
एक आगामी प्रस्तुती देती है,
तुम कितने खुशनसीब हो,
तुम आजाद हो गये हो,
लेकिन…………………
वह आज भी कठपुतली है,
कल वह,
खिलौने बेचने वाले का,
और आज अपने बूढे माँ-बाप,
का पेट भरती है,
इन बीते सालो मे,
अगर कुछ बदल गया है,
तो………….
वह पहले मिट्टी की हुआ करती थी,
लेकिन आज तुम जकड़ कर पत्थर के बन गये हो।

रचना:
प्रतीक संचेती

Friday, 28 September 2012

भावो की उड़ान



नहीं जानता इन शब्दो का कारण,
मेरे मन मे ऐसे भाव उठ रहे है,
खूब चाहा आज दबाना इन्हे,
लेकिन यह कहाँ रुक रहे हैं।
कहीं चेहरो की रंजिश ने दाबिश दी है,
कहीं औरो के ख्याल दिख रहे हैं,
लोगो की सुनी तो दिवाना ना बना,
आज दिलो से जंजाल बिक रहे हैं।
तेरे चेहरे को देख कर खुदा भी ना माना,
कुदरत जो अदभुद यह आकार लिख रहे हैं,
बारिशो की रंजिश मै भीगना चाहता हुँ आज,
लेकिन ‘प्रतीक’ दिल मे कई कलाकार टिक रहे हैं।
मेरे मन से कई पार दिख रहे हैं,
आवारा भावो के सत्कार दिख रहे है……………मुझे मेरे कई कलाकार दिख रहे हैं……………….!

धन्यवाद
प्रतीक संचेती