अगर जिंदगी को जीना
है;
तो काँटो से सीखो,
कलियो से सीखो, बादल से सीखो,
मै सीखता रहा हर एक
बंदे की नुमाईश पर……………
कि फिर………….
किसी ने कहा खुदा की
इबादत से सीखो,
खिलते फूलो से सीखो,
मौसम की आहट से सीखो……………………..
सिखाता रहा मुझे हर
एक फरिश्ता,
कि मिलती रही मौसम
की गहराईयाँ,
समुन्दर को छु लू ऐसा
मेरा कद तो नही दोस्तो,
लेकिन आप अपनो से मिलती
रही ऊचाईयाँ……..
सारे अरमानो को मैने
इंसानियत मे उतारा जब,
मुझे मिलती रही खुशबू
और आपके प्यार की रूबाईयाँ……………………….
तुकबंदी कहो या कहलेना
इसे दिल की धड़कन,
सिखाती रही मुश्किले
और बनती रही कहानियाँ,
कुदरत का स्पर्श मिलता
रहा हर एक स्थान पर,
चाहे हो धरती, बादल,
काँटे या अपनो की अच्छाईयाँ,
सारा कुछ इसी का है
यह फूल, पौधे,
सब इसकी ही तो है इकाईंयाँ………………………
कुदरत ने दूर की मेरे
दिल की हर एक तनहाईयाँ,
आप अपनो से मिलती रही
जीवन को गहराईयाँ,
सब इसकी ही तो है इकाईयाँ……………….सब
इसकी ही तो है इकाईयाँ……………………….
रचना:
प्रतीक संचेती
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।
ReplyDeleteसादर
प्रतीक