बचपन के उन
पलो को हम
कभी शायद दोहरा
तो नही सकते
लेकिन उन बिताये
पलो को कभी
भूलना मुमकिन नही
है/ ऐसे ही
पलो को समेटने
पेश है मेरी
कुछ पंक्तियाँ:
वह तस्वीर आज इतना
सता रहीं है,
बचपन के पलो
की जो याद
आ रहीं
है,
बहन के साथ
खेलना मस्ती भरी
होली,
और माँ की
याद मुझको रुला
रही है/
वह तस्वीर आज इतना
सता रही है,
बचपन के पलो
की जो याद
आ रहीं है/
मंजिलो कि खातिर
दूर लगता था
जाना,
लेकिन अब तो
यह मंजिले भी
तड़पा रहीं है,
दिल के दरवाजे
अब जिस मोड
पर खुलते,
वह गलिया मेरे माँ-पा के
चरणो मे समा
रहीं है/
वह तस्वीर आज इतना
सता रहीं है,
बचपन के पलो
की जो याद
आ रहीं है/
शायद मै कभी
तुमको बता ना
पाया,
माँ अपने दिल
की बात कभी
समझा ना पाया,
तुम्हारी खुशियो के खातिर
ही तुमसे दूर
हुँ आज,
यहाँ आपकी समझ
ही मुझको चलना
सिखा रहीं है/
वह तस्वीर आज इतना
सता रहीं है,
बचपन के पलो
की जो याद
आ रहीं है,
वह तस्वीर आज इतना
सता रही है/-2
रचना:
प्रतीक संचेती
मर्मस्पशी रचना....माँ से जुड़ी हर याद अनमोल है ....
ReplyDeleteमाननीय मोनिका जी आपका हृदय से शुक्रिया/ मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाये/
Deleteआपका
प्रतीक संचेती
बहुत बढ़िया लिखा है आपने मातृ दिवस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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माननीय कालीपद जी आपका हृदय से शुक्रिया/ मातृ दिवस की आपको एवं परिवार की सभी माताओ को हार्दिक शुभकामनाये/
Deleteआपका
प्रतीक संचेती
दिल को छू लेने वाले शब्द ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
माननीय दिगम्बर जी आपका हृदय से शुक्रिया/ मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाये/
Deleteआपका
प्रतीक संचेती