Saturday 11 May 2013

“बचपने से भरा बचपन”




बचपन के उन पलो को हम कभी शायद दोहरा तो नही सकते लेकिन उन बिताये पलो को कभी भूलना मुमकिन नही है/ ऐसे ही पलो को समेटने पेश है मेरी कुछ पंक्तियाँ:

वह तस्वीर आज इतना सता रहीं है,
बचपन के पलो की जो याद   रहीं है,
बहन के साथ खेलना मस्ती भरी होली,
और माँ की याद मुझको रुला रही है/

वह तस्वीर आज इतना सता रही है,
बचपन के पलो की जो याद रहीं है/

मंजिलो कि खातिर दूर लगता था जाना,
लेकिन अब तो यह मंजिले भी तड़पा रहीं है,
दिल के दरवाजे अब जिस मोड पर खुलते,
वह गलिया मेरे माँ-पा के चरणो मे समा रहीं है/

वह तस्वीर आज इतना सता रहीं है,
बचपन के पलो की जो याद रहीं है/

शायद मै कभी तुमको बता ना पाया,
माँ अपने दिल की बात कभी समझा ना पाया,
तुम्हारी खुशियो के खातिर ही तुमसे दूर हुँ आज,
यहाँ आपकी समझ ही मुझको चलना सिखा रहीं है/

वह तस्वीर आज इतना सता रहीं है,
बचपन के पलो की जो याद रहीं है,
वह तस्वीर आज इतना सता रही है/-2

रचना:
प्रतीक संचेती

6 comments:

  1. मर्मस्पशी रचना....माँ से जुड़ी हर याद अनमोल है ....

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    1. माननीय मोनिका जी आपका हृदय से शुक्रिया/ मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाये/

      आपका
      प्रतीक संचेती

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  2. बहुत बढ़िया लिखा है आपने मातृ दिवस की शुभकामनाएं

    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post हे ! भारत के मातायों
    latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

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    1. माननीय कालीपद जी आपका हृदय से शुक्रिया/ मातृ दिवस की आपको एवं परिवार की सभी माताओ को हार्दिक शुभकामनाये/

      आपका
      प्रतीक संचेती

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  3. दिल को छू लेने वाले शब्द ...
    बहुत खूब ...

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    1. माननीय दिगम्बर जी आपका हृदय से शुक्रिया/ मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाये/

      आपका
      प्रतीक संचेती

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