Thursday 22 November 2012
‘अंत से अंत तक’
हर व्यक्ति के अपने आर्दश होते है और वह उसी हिसाब से अपना जीवन यापन करता है। लेकिन ‘अंत से अंत’ तक का यह किस्सा बहुत ही निराला है। कोई मर जाये तो स्मारक बना दो और आने वाली पीढी को उनके नाम याद करा दो।
बिन ‘औधा’ ले ‘उप-आधि’,
उठ जाती जब मेरी दुनिया,
रचना:
Saturday 27 October 2012
कई कहते है
मैने शब्दो मे
खुद को कस रखा है,
मै क्या बताऊँ उन्हे
इन्ही शब्दो से
मेरा दिल ढ़खा है,
कहने को तो
बहुत “गम” दिये
इस “हसीन जिंदगी” ने,
लेकिन जिंदादिलि का
हक
बस इन्ही शब्दो मे
बसा है।
कई कहते है,
मैने शब्दो मे
खुद को कस रखा है।
जहाँ
मन के भावो की
उड़ान मिले,
जहाँ
मुश्किलो मे भी,
खुला आसमान मिले,
ऐसे लम्हो को
कैसे छोड़ दू मै,
यह
लिखना कहाँ
मेरी जिंदगी का गिला
है।
कई कहते है
मैने शब्दो मे
खुद को कस रखा है।
रचना:
प्रतीक संचेती
Wednesday 17 October 2012
“प्यार से कहता रहा”
प्यार से कहता रहा
हुँ,
देख तेरे रूप कितने,
पास तेरी धमनियो मे,
बह रहे मगरूर कितने।
आज तूने किस कदर,
इन अदाओ को सवारा,
जुल्फ की अंगड़ाईयो
से,
गीत का मंजर बिखारा।
इन निगाहो मे छिपी
है,
मदहोश करती कुछ लतायें,
इन नजारो मे बिछे है,
जिंदगी के सूल कितने।
प्यार से कहता रहा
हुँ,
देख तेरे रूप कितने।
रचना:
प्रतीक संचेती
Friday 12 October 2012
दिल के करीब लम्हे
छोटे से
कंधे पर सो
जाना,
फिर अपनी
बक-बक
से
उसे पकाना,
EMOTION की
गलियो मे खोकर,
MIND को
FRACTURE कर जाना।
कही हिन्दी
मे
बक-बक
करना,
कही ENGLISH से
HINGLISH बनाना,
वह रातो
को
जागना,
वह दिनो
मे
लोरी सुनाना।
CLASS ROOM
मे
बैठकर,
करना वही
ALL TIME पक-पक,
फिर कुछ
ही
घंटो मे,
सपनो की
दुनिया का ROUND लगाना।
सर के
सवालो से,
HEAD को
खुजाना,
फिर अंत
मे
दिमाग से,
खुद TEACHER को ही उलझाना।
पागलो सा
रास्तो मे उचकना,
फिर SHOES की
डोर जमाना,
वह पत्थरो
को
देना एक लात,
वह दोस्त
के
पैर मे लग
जाना।
पूरे रास्ते
भर
फिर सुनना गाली,
और वह
प्यार के झापड़
खाना,
IDIOT कहकर कमीने चिल्लाना,
फिर वही
बातो मे खो
जाना।
भईया-भाभी
के
जाल बुनना,
लेकिन BROTHER-SISTER से
रिश्ते बनाना,
मस्त होकर
कई
पल
बिताना,
फिर किताबो
का
IQ आजमाना।
SOLUTION
के
नये-नये तरीके
खोजना,
लेकिन SHORTCUT से
ही
JUMP लगाना,
CARTOON और
JOKER जैसे कई
किरदार निभाना,
फिर हवाओ
मे
खुलकर खूब चिल्लाना।
पूरी दुनिया
को
करना ASIDE,
और हर
पल
को
कुछ इस तरह
जी
जाना,
कभी हँसना
कभी रोना,
लेकिन सारे
लम्हो को साथ
बिताना।
फिर छोटे
से
कंधे पर सो
जाना………………………….
रचना:
प्रतीक संचेती
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