कई कहते है
मैने शब्दो मे
खुद को कस रखा है,
मै क्या बताऊँ उन्हे
इन्ही शब्दो से
मेरा दिल ढ़खा है,
कहने को तो
बहुत “गम” दिये
इस “हसीन जिंदगी” ने,
लेकिन जिंदादिलि का
हक
बस इन्ही शब्दो मे
बसा है।
कई कहते है,
मैने शब्दो मे
खुद को कस रखा है।
जहाँ
मन के भावो की
उड़ान मिले,
जहाँ
मुश्किलो मे भी,
खुला आसमान मिले,
ऐसे लम्हो को
कैसे छोड़ दू मै,
यह
लिखना कहाँ
मेरी जिंदगी का गिला
है।
कई कहते है
मैने शब्दो मे
खुद को कस रखा है।
रचना:
प्रतीक संचेती
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