लाख
पी है आज मैने,
जिंदगी
की वह रुमानी,
खूब
पी है आज मैने,
काँच
बोतल से कहानी,
आज
मैने झाँक कर,
रस
लवो को पीस डाला,
आज
मैने जिंदगी के कुछ हदो को सींच डाला,
जिंदगी की मधुशाला।
आज
हाला की खता पर,
खूब
काजल भी जलाये,
आज
मैने साफ कहकर,
खूब
दिवाने बनाये,
आज
ठस मे पी गया मै,
जिंदगी
का वह निराला,
खूब
खीच कर बुलाई और यौवन की वह बाला,
जिंदगी की मधुशाला।
खूब नाचा
है मदिरा,
आज मेरे पथ
चरण से,
खूब खोया
है मुसाफिर,
रास्तो के
चल-गमन से,
आज मधु का
वह प्याला,
जाम इतना
भर गया है,
आज मुश्किल
खो गई है बट गई जो राजमाला, जिंदगी की मधुशाला।
रचना:
प्रतीक संचेती
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