जब
छोटे थे,
तुम
उसे कितना नचाया करते थे,
हर
त्योहार मे वह,
तुम्हारे
साथ होती थी,
आज
भी तुम,
उसे
नचाते हो,
अपने
इशारो से,
तुम
उसे लोचन सा,
तिमिर-तिमिर
घुमाते हो,
बचपन
की वह मस्ती,
तुम्हे
खुशी देती थी,
आज
भी तुम खुश हो,
वह
भी कठपुतली सा नृत्य करती है,
लेकिन…….
अब
तुम्हे उसकी डोर नही पकडना पडती,
वह
आधुनिक हो गई है ना?
तुम्हारे
इशारो से,
एक
आगामी प्रस्तुती देती है,
तुम
कितने खुशनसीब हो,
तुम
आजाद हो गये हो,
लेकिन…………………
वह
आज भी कठपुतली है,
कल
वह,
खिलौने
बेचने वाले का,
और
आज अपने बूढे माँ-बाप,
का
पेट भरती है,
इन
बीते सालो मे,
अगर
कुछ बदल गया है,
तो………….
वह
पहले मिट्टी की हुआ करती थी,
लेकिन
आज तुम जकड़ कर पत्थर के बन गये हो।
रचना:
प्रतीक संचेती
प्रतीक संचेती
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