नहीं जानता इन शब्दो
का कारण,
मेरे मन मे ऐसे भाव
उठ रहे है,
खूब चाहा आज दबाना
इन्हे,
लेकिन यह कहाँ रुक रहे हैं।
कहीं चेहरो की रंजिश
ने दाबिश दी है,
कहीं औरो के ख्याल दिख
रहे हैं,
लोगो की सुनी तो दिवाना
ना बना,
आज दिलो से जंजाल बिक
रहे हैं।
तेरे चेहरे को देख
कर खुदा भी ना माना,
कुदरत जो अदभुद यह
आकार लिख रहे हैं,
बारिशो की रंजिश मै
भीगना चाहता हुँ आज,
लेकिन ‘प्रतीक’ दिल
मे कई कलाकार टिक रहे हैं।
मेरे मन से कई पार
दिख रहे हैं,
आवारा भावो के सत्कार
दिख रहे है……………मुझे मेरे कई कलाकार दिख रहे हैं……………….!
धन्यवाद
प्रतीक संचेती
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।
Deleteआभार
प्रतीक संचेती
अच्छी रचना !
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद सुशील जी।
Deleteप्रतीक संचेती