तेरे
दिवाने हम कहाँ थे,
तेरी
खामोशी ने बना दिया,
हमने
तेरी कोमल कलियो से,
एक
नया बाग सजा दिया।
चाहत की हद भी ना देखी,
गैरो ने काँटो के प्यार मे,
दुनिया
ने जिसे इतना कोसा,
तूने
उसे साथ बिठा दिया।
तेरे
दिवाने हम कहाँ थे,
तेरी
खामोशी ने बना दिया।
लाखों ठोकर खाने पर भी,
उसको
मंजिल कहाँ मिली,
अपनी
खामोशी से उसने,
तुझको
आबाद करा दिया।
तेरा
अस्तित्व काँटो से है,
तूने
इसे बखूबी जाना गुलाब,
लेकिन
मुश्किलो मे इंसानो ने,
तुझपर
भी इंजाम लगा दिया।
तेरे
दिवाने हम कहाँ थे,
तेरी
खामोशी ने बना दिया।
धन्यवाद
प्रतीक संचेती
धन्यवाद
प्रतीक संचेती
No comments:
Post a Comment