कैद कर लुँ यह नजारे,
जो मुझे अपना रहे हैं,
फूल बादल सब मिलाकर,
गीत को फरमा रहे हैं।
वह जो मानव कर रहा
है,
धूल की उत्तम सफाई,
वह धुँआ जो उड़ रहा
है,
कह रहा चल अब बुराई।
यह नियम है प्रकृती
का,
बैर को जो है मिटाना,
साथ जीना हर कदम पर,
देखना फिर तू जमाना।
आस भी तू ना लगाये,
ऐसी फहफिल जम रही है,
कैद कर लुँ यह नजारे,
प्रकृती बदल रही है……………….
रचना:
प्रतीक संचेती
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