खूब बरस गए मेघो से,
एक कवायत हमने की,
पूछा यादो की क्यों तुलना,
हिम-हिमालय से तुमने की।
गज-बरस
कर फिर युँ बोले,एक कवायत हमने की,
पूछा यादो की क्यों तुलना,
हिम-हिमालय से तुमने की।
मैने तो इंत-जाम किया,
फिकी-फिकी बारिश को,
ख्वाबों से अंजाम दिया।
बस क्या था फिर समधर मे,
रातो की ही शाम हुई,
लीन हुई सारी महफिल,
और खूब शरारत मन ने की।
खूब बरस गए मेघो से,
एक कवायत हमने की।।
प्रतीक संचेती द्वारा
अच्छे भाव हैं प्रतीक.
ReplyDeleteटंकण त्रुटियों पर ध्यान दीजिए.
फीकी-फीकी बारिश करें..
शुभकामनाएं
अनु
धन्यवाद अनु जी।
Deleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना....
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद शरद जी।
Deleteप्रतीक संचेती