Tuesday, 7 August 2012

“खूब बरस गए मेघो से”




खूब बरस गए मेघो से,
एक कवायत हमने की,
पूछा यादो की क्यों तुलना,
हिम-हिमालय से तुमने की।

गज-बरस कर फिर युँ बोले,
मैने तो इंत-जाम किया,
फिकी-फिकी बारिश को,
ख्वाबों से अंजाम दिया।

बस क्या था फिर समधर मे,
रातो की ही शाम हुई,
लीन हुई सारी महफिल,
और खूब शरारत मन ने की।

खूब बरस गए मेघो से,
एक कवायत हमने की।।

प्रतीक संचेती द्वारा

4 comments:

  1. अच्छे भाव हैं प्रतीक.

    टंकण त्रुटियों पर ध्यान दीजिए.
    फीकी-फीकी बारिश करें..
    शुभकामनाएं
    अनु

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  2. बहुत सुन्दर ....
    भावपूर्ण रचना....

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    1. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद शरद जी।
      प्रतीक संचेती

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