मुद्द्तो
के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी,
जिंदगानी
की समीक्षा लहरो से कह रहीं थी,
पास
तूने क्यों बुलाया; जो तुझे थमना नही था,
मुस्कुरा
कर कह गईं बहना सिखाने बह रही थी।
मुद्द्तो
के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी।
कश्मकश
की हर डगर परछाईंयो के साथ थी,
पास
मैने जो पुकारा दोस्तो के नाम थी,
कुछ
अनछुऐ मृगजलो के दूर कितने स्ताप थे,
स्वास
तो कुछ हवाएँ घुल-मिला कर दे रही थी।
मुद्द्तो
के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी,
दोस्ती
की यह अदाएँ कई दिलों मे लह रही थी;
मुद्द्तो
के पास से वह हवाएँ बह रहीं थी।
-2
प्रतीक संचेती द्वारा
No comments:
Post a Comment