Saturday, 14 July 2012

“बूँद-बूँद मे महकते स्वप्न”

Written By Prateek Sancheti


इन बूँद-बूँद लहरो का मैने देखा है अफसाना,
इन बूँद-बूँद राहो को मैने देखा है बढते जाना,
इन बूँद-बूँद बारिशों मे देखी है मैने भी नमी,
इन बूँद-बूँद की कृतियों मे देखा है मैने घुल जाना।

इन बूँद-बूँद के संस्कारो मे देखी है मैने करूणा,
इन बूँद-बूँद के खपरो से देखा है बनता आशियाना,
इन बूँद-बूँद के रंगो मे पाई है मैने रंगोली,
इन बूँद-बूँद के दीपो से देखा है सजता तट राणा ।

इन बूँद-बूँद की तड़पाहट मे देखी है मैने मंजिल,
इन बूँद-बूँद की गर्राहट मे देखा है फ़ट जाना,
इन बूँद-बूँद के शब्दो से पाई है मैने शीतलता,
इन बूँद-बूँद की उम्मीदो से छोडा है ताना-बाना ।

इन बूँद-बूँद लहरो का मैने देखा है अफसाना,
इन बूँद-बूँद राहो को मैने देखा है बढते जाना।।

2 comments:

  1. बहुत खूबसूरत हैं “बूँद-बूँद मे महकते स्वप्न”... शुभकामनायें

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    1. संध्या जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
      सदा साथ बनाये रखे।
      प्रतीक संचेती

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