Written By Prateek Sancheti |
इन
बूँद-बूँद लहरो का
मैने देखा है अफसाना,
इन
बूँद-बूँद राहो को
मैने देखा है बढते जाना,
इन
बूँद-बूँद बारिशों
मे देखी है मैने भी नमी,
इन
बूँद-बूँद की कृतियों
मे देखा है मैने घुल जाना।
इन
बूँद-बूँद के संस्कारो
मे देखी है मैने करूणा,
इन
बूँद-बूँद के खपरो
से देखा है बनता आशियाना,
इन
बूँद-बूँद के रंगो
मे पाई है मैने रंगोली,
इन
बूँद-बूँद के दीपो
से देखा है सजता तट राणा ।
इन
बूँद-बूँद की तड़पाहट
मे देखी है मैने मंजिल,
इन
बूँद-बूँद की गर्राहट
मे देखा है फ़ट जाना,
इन
बूँद-बूँद के शब्दो
से पाई है मैने शीतलता,
इन
बूँद-बूँद की उम्मीदो
से छोडा है ताना-बाना ।
इन
बूँद-बूँद लहरो का
मैने देखा है अफसाना,
इन बूँद-बूँद राहो
को मैने देखा है बढते जाना।।
बहुत खूबसूरत हैं “बूँद-बूँद मे महकते स्वप्न”... शुभकामनायें
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संध्या जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसदा साथ बनाये रखे।
प्रतीक संचेती