Written by Prateek Sancheti |
इन ध्रुवी निगाहों से बहुत दूर जाऊँगा,
समुद्र की कश्ती को अपनी मुस्कान से बहाऊंगा,
सारा अम्बर एक ही मझदार को पकड़ेगा,
हवांए बदलेंगी और में अपनी छाप छोड़ जाऊँगा;
इन ध्रुवी निगाहों से बहुत दूर जाऊँगा!
मेरे करवट बदलते मोड़ पर मत उलझना,
बिस्तर मखमल का दुनिया के लिए सिलवाऊँगा,
आहें मेरी संसार को समझेंगी,
में सांसो में बस कुदरत घोल जाऊँगा;
इन ध्रुवी निगाहों से बहुत दूर जाऊँगा!
काव्य के रस की जाम भर,
तेरे लिए लिखित मधुशाला खुलवाऊंगा,
बच्चन साहब भी जहाँ फीर जन्म लेंगे,
ऐसी धरती को में कविता में लिख जाऊँगा.
इन ध्रुवी निगाहों से बहुत दूर जाऊँगा!
बहुत सुन्दर रचना लिखे हो भाई जी .....आप बधाई के पात्र है .....
ReplyDeleteमुकेश जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद! बस आप सब का स्नेह यूँही बना रहे!
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